दावा-दारू
दावा-दारू


दवा की शौकीन नहीँ मैं
दारू ही पिला दो
मर्ज मगज़ मे मेरी
बोतल ही हिला दो
जीना चाहता है कौन
मुर्दों की इस भीड़ में
ना रोको मुझे यारों
मेरी मर्जी की दिला दो।।
मौत तक का सफर
अखर रहा है बहुत
गटक लिया है दर्द कई
बाक़ी है भी बहुत
कंकाल की खाल मे
जीबन जो बचा शेष
आज भी अकड़ा खड़ा है
कमवक्त जिद्दी है बहुत।।
सलाम करता हूँ बार बार
ये ज़िद भी कमाल का
उखाड़ फेकता हर बार
दर्द-ए मलाल का
हर दर्द की ज़र्द को
सर्द कर देता ये ज़िद
ज़िद की ईद मनाता हूँ मैं
जस्न-ए-बर्बादी का।।
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मत पूछो मुझे बार बार
जहर का स्वाद क्या है
ज़िन्दगी की लहर क्या
मौत की कहर क्या है।
सहर सहर घुमा हूँ मैं
डगर डगर गिरा हूँ
मुझे तो ना सिखाओ यारों
गिर के संभलना क्या है।।
कई गिरने बालों को
संभलते देखा हूँ
दम भरने वालों को भी
लड़खड़ाते देखा हूँ
खड़े है जो भीड़ में
तमासबीन बन कर,
दिन में सतसंग रात को
तमासा करते देखा हूँ।।
ये तो जिंदगी है यारों
जीते हैं हर कोई
लाख कोशिश बाबजूद
मरते हैं हर कोई
ग़ालिब कौन साक़ी कौन
खुद से क्यों ना पूछते
दवा की आड़ में दारू
पिते हैं हर कोई।।