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Nishant Kumar Saxena

Abstract Inspirational

4  

Nishant Kumar Saxena

Abstract Inspirational

चेतना के स्तर

चेतना के स्तर

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वेद, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबिल आदि

धर्म ग्रंथ कंठस्थ करके 

ज्ञान को स्वयं पर हावी करके 

शास्त्रों के मूल मर्म को त्याग करके


प्रेम, एकता, समानता, सहायता, 

अच्छा व्यवहार, समान न्याय 

और मृदु वाणी को भूल करके 


श्रेष्ठता के अभिमान में चूर हो, 

अनावश्यक कटुता, 

वर्ग की गुटबाजी 

और कठोर व्यवहार के द्वारा 

क्या प्राप्त होता है?


ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए।

निर्मल मन जन सो मोहि भावा।

वसुधैव कुटुंबकम।

दुर्बल को ना सताइए।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय


इस प्रकार के लक्षण 

जब तक स्वतः ही प्रकट नहीं हो रहे 

तब तक सारी पूजा-पाठ, प्रार्थना 

इबादत, साधना, धर्म-कर्म 

क्या मिथ्या नहीं है?


क्या आडंबर नहीं है, 

क्या महज़ दिखावा नहीं है?


ऐसा प्राणी 

ना भक्ति मार्ग में सफल 

ना कर्म योग में, 

परमात्मा से तो वह 

अस्वीकृत ही है।


क्या ऐसे प्राणी को

विवेक और चेतना के

उच्च स्तर की आवश्यकता नहीं है ?


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