किनारा
किनारा


किनारे बैठ कर समझा सहज पाना किनारा है।
उतरे जब गहन जल में कठिन माना किनारा है।
फँसा जो भँवर रहता तृण भी जलयान माने।
सहारा उसका लेकर ही पाता वह किनारा है।
कामी जो मनुज मन से काम-कामी सदा रहता।
कामना डूब जाने की नहीं चाहे किनारा है।
अनुपम भक्ति रस को जो कभी पीता निजी मन से।
उतरना सिंधु में चाहे नहीं चाहे किनारा है।
धाराएं विचारों की मेल जब नहीं खातीं।
करने दूर अपनों को करते सब किनारा हैं।
मन उन्मन सदा रहता अकेला छूट जो जाता।
टूटने आस भी लगती नहीं दिखता किनारा है।
अपार संसार सागर में बहे धारा अनेकों हैं।
डूबते जीव सब उसमें ईश केवल किनारा है।
अनंत अनादि वो शाश्वत अपरिमित भी वही होता।
सीमा से नहीं बँधता नहीं जिसका किनारा है।
उदधि उतरे महा ज्ञानी गहन गोते लगाते हैं।
रहे झोली सदा खाली जमे जड़ जो किनारा है॥