कभी नायक था जीवन का
कभी नायक था जीवन का


शैशव, यौवन
जीवन कब बीत गया
वृद्धावस्था में जाने
मैं कब आ गया
दर्पण के समक्ष
प्रतिबिंब निहारता हूँ
जीवन इतिहास
कितना बदल गया
नायक था कभी जीवन का
आज अकेला रह गया हूँ
नायक हमेशा रहा
अपने जीवन का
आज जीवन मेरा
बेबस क्यों हो गया है
गिरकर उठा और
कई बार संभला हूँ
करुणा और दया के सागर में
बहकर आगे निकल गया
नायक था कभी जीवन का
आज अकेला रह गया हूँ
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जब तक कदम चलते थे
सबने साथ निभाया
आज बेबस हूँ
सबने अपना हाथ हटाया
अब जीवन में
कोई गीत नहीं संगीत नहीं
कभी सहारा था सबका
आज अकेला रह गया
नायक था कभी जीवन का
आज अकेला रह गया हूँ
चारों और रिश्तों का
तांता लगा रहता था
आज अकेला ही खड़ा हूँ
संभल संभल कर चलता
कभी गिरता कभी फिसलता
सुबह की सुनहरी धूप
रात अंधेरी सी लगती है
नायक था कभी जीवन का
आज अकेला रह गया हूँ।