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Devendraa Kumar mishra

Abstract

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Devendraa Kumar mishra

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शर्त सौदेबाजी है

शर्त सौदेबाजी है

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मैं शर्तों पर सम्बंध नहीं बनाता 

न दोस्ती न रिश्तेदारी, प्यार न मोहब्बत 

मुझे सौदेबाजी आती भी नहीं 

बिना शर्त बना सको तो स्वागत है 


और फिर निभा सको 

मात्र औपचारिकता से दूर रहता हूं मैं 

गहरे में उतर सको, बिना शर्त, तो स्वागत है. 

उथला पन न मेरे स्वभाव में है और न समय देखकर

गिरगिट की तरह रंग बदलना आता है मुझे 


मैं आदमी हूं अनौपचारिक 

गहरे और दूर तक चलने वाला 

संसार के चलन से नहीं चलता मैं 

मेरा अपना तरीका है जीने का 


न दुनियां दारी लागू होने देता हूं खुद पर 

और चाहता हूं सम्बंध बनाते समय दुनियावी प्रपंच 

मैं और तुम बस 

शर्त एक तरह की सौदेबाजी है 


और हर सौदे की एक शर्त होती है 

मुझे दोनों पसंद नहीं।


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