रज़ा तुम्हारी काफी है
रज़ा तुम्हारी काफी है
रज़ा ना पूछिये मेरी, रज़ा तुम्हारी काफी है, इस दहकती आग में, एक झलक काफी है।
ये जिस्म मचल के, बहुत शोर करता है, रज़ा हो जो तुम्हारी, तो ये तड़प काफी है।
तुम आने से पहले, मेरा नाम ना लेना, बस चुपचाप चले आना, एक इशारा काफी है।
रज़ा पूछने में कहीं ....ये वक़्त गुजर ना जाए, मेरे जवाब का क्या ? तुम्हारे सवाल काफी है।
मेरा जिस्म रो पड़ेगा, गर रज़ा पलट देगी, तुम्हारी कसम बदन की, नई तपन काफी है।
तुम्हारे छूने से ही, मेरी रज़ा करार पावे, तुम आगे बढ़ते जाना, नहीं उतना काफी है।
एक ठंडक जिस्म को, तेरी रज़ा से होगी, रज़ा ना पूछिये मेरी, रज़ा तुम्हारी काफी है।।

