अजनबी सी सुबह
अजनबी सी सुबह
हो गयी अजनबी सी सुबह है
चल ऐ मुसाफिर तू क्यों खफा है!
माना रास्तों में क्लेश बहुत है
पर तेरी साँसो से निशेष बहुत है!
दौड़ पड़ा जहाँ तू अकेला है
देख वहां तेरे संग तू खड़ा है!
जरूरत तुझे क्यों कोई साथ की है
जब तू खुद ही सक्षम है!
देख मुसाफिर एक अजनबी सी सुबह है।