अभी आप बिखर जाते
अभी आप बिखर जाते
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अरे अगर ....
अभी आप बिखर जाते ,
सोचो ज़रा .....
कैसे फिर संभल पाते ?
सुनकर मैं मुस्कुरा दी ,
उसकी बातों की थाह ली ,
फिर थोड़ा सोच कर ,
मन ही मन में बोली |
तुम दोनो के होते अगर ,
हम ऐसे बिखर जाते ,
तो तुम दोनो के होने का ,
एहसास एक नया पाते |
ये बिखरना - बिखराना भी तो ,
एक नया अन्दाज है ,
गर ये ना हो तो इस जीवन में ,
कोई ना नया साज है |
इस बिखरने से ही तो ,
ये दुनिया बनती है ,
मिलन की नई - नई सीढ़ी ,
जब वो चढ़ती है |
जो लोग बिखरने से ,
ऐसे डरा करते हैं ....
तमाम उम्र वो किसी की ,
आँखों में नहीं उतरते हैं |
स्त्री - पुरुष के बिखरने का ,
ये खेल निराला होता है ...
तभी तो हर बिखरने के पीछे ,
एक हाथ थामने वाला होता है ||