आस
आस
शाम से आँखों में कुछ नमी नमी सी थी
आप ही की कमी महसूस हो रही थी
सुरज की किरने रोशनी पे भारी थी
दिल में जैसे आपके यादों की आरी थी
दूरत क कहीं मिलने की वजह नहीं थी
झाकंते थे हम आईना तो तस्वीर आपकी ही की उभर रही थी
चलता रहा ये सिलसिला राह तकने का
खाकर तरस हम पर सूरज भी डूब गया
रात को चांद ने फिर से दस्तक दी
एक उम्मीद बनी फिर से आपके दीदार की
शमा को जलाए बैठे रहे हम उदासी की झुर्रियां लिए
फिर एक नगमा सा उतर गया मनमें
फिर कुछ सवाल उठे मन की कोठरी में
ये कौन सा रिश्ता है टूटने से डरते हैं हम
तकदीर ने क्यूं नहीं मिलवाया
अब तक सोचने पर मजबूर होते हैं हम
दस्तूरे जमाना ये है.
मिलना बिछडना किस्मत का खेल है
अब शमा भी बुझी बुझी सी हो गई
धुंआ सा फैला गई और रात सुबह पर भारी हो गई
फिरसे सूरज निकल गया और फैला गया नयी रोशनी
खडे हुए एक नयी आस को बांधकर
बेसब्र थे हम करने को आपका दीदार
जिसके लिए हमारा दिल था बेकरार
चलो मिलने की कुछ तो वजह बनाए
खत्म कर इन ख़ामोशियों को शब्दों को तो मिलवाए
शाम से आँखों में कुछ-कुछ नमी सी थी..