यादें
यादें
सोचती हूं दिल की अलमारी से
तुम्हारी पुरानी यादों को निकाल दूं
और अलग से कहीं संभाल कर रख दूं
तो शायद नई यादों को
दिल में जगह मिल जाए
पर पुरानी यादों को मैं
निकाल भी ना सकूंगी
वो ही तो तुम तक पहुंचने का जरिया है
ना तुम दस्तक देतें
ना हाथ बढाने को कहते
तोना तुम्हारी यादें द बनती
उन्ही सें तो हैं आज ईतना निखार
जरुरी ही नहीं अब
मुझे करना पडे सिंगार
हवाओं में भी उनकी भीनी भीनी खुशबू
दमकती रहती है.
तुम मिलोगे या नहीं मैं नहीं जानती
पर जब भी कुछ लिखने को
मन करता हैं तो
सवाल मन में जरुर उठता हैं कि
क्या लिखुंगी जो तुम तक पहुंच जाए
जवाब कुछ नहीं मिलता
बैचेनी सी होती है
शमा भी रातभर जलकर बुझ जाती है
और मैं खुद को समेटते बैठी रहती हूं
तुम्हारी पुरानी यादों के सहारे।