पल पल की दूरी
पल पल की दूरी


क्यूँ लम्हें-लम्हें का साथ है
फिर भी पल-पल की दूरी लगती है,
अधरों पर गहरी प्यास लिए
रेतीली ज़िस्त जिए जा रहे है !
रिश्ते की हर पपड़ी कुरेद कर देखा,
कुछ शेष निशानियों के
मलबे के सिवा कुछ नहीं !
तन को छूते वाक्बाण फ़िके शब्दों
में लिपटे दिल को जला रहे है,
मन के तट की पीर दर्द की
लहरें बहा ले जाती है !
आसमान से तारों की माला टूटी है
शायद जो बूँद-बूँद बरसती बिखरी है,
मेरे अश्रु को धोती संग बहा रही है.!
डस रहा है चाँद सा दीप,
था उजाला जिनसे कभी,
आज अमावस की स्याही सा लग रहा है !
प्रीत के बीज जलते हैं,
सपने अंगारों में पलते है,
मिलन के पल में विरह के फूल
अश्रु की नमी लिए खिलते हैं !
बेशूमार थी नशीली नयनों के जाम से
भरी प्याली मदिरा की,
आज ज़हर की जलधारा लगती है !
क्यूँ पल-पल का साथ भी
अब पल-पल की दूरी लगती है।