आ जाओ ना
आ जाओ ना


दिल की सीप से चोरी हुआ मेरी मोहब्बत का मोती.!
उस पूरे चाँद की रात के मद्धम बहते पहर में
चूमकर लबों को प्यास दे गया तू.!
इस अधरों पे पड़े
स्मृति चिन्ह के घाव की खुशबू से
दर्द को तो नींद आने लगी
उफ्फ़ डूबती नब्ज़ से ये कैसा निनाद उठा,
साँसे शोर मचाने लगी.!
तुम बिन मौसम की बारिश से बरस गए
लो ज़िंदगी अब रुठी हुई लगती है.!
क्या फिर अवतरित होंगे सूरज की तरह स्पंदन के मोती,
क्या कड़वा कसैला वक्त बीतेगा कभी.!
अवरोध को पार करते आ जाओ
की अहसास यादों का रुप ना ले ले,
सजदे सी चाहत न दम तोड़ दे
लौट आओ अज़ाँ खत्म होने से पहले।।