ज़िद्दी और शैतान यादें !
ज़िद्दी और शैतान यादें !


जब भी याद मुझे तेरी आती है
मेरी वफ़ा मुझ पर बड़ी मुस्कुराती है
देख उसकी कटाक्ष भरी मुस्कान
दिल में मेरे बड़ा दर्द होता है
फिर भी खुद पर फक्र होता है।
कि मैंने इतने सालों तक उन्हें
मोटी-मोटी ज़ंजीरों में जकड़े रखा है
ताकि तुम चैन से जी सको वहाँ
और रातों को सुकूँ से सो सको वहाँ।
लेकिन सुनो कल रात से ही मेरी
वो यादें बिन बताए फरार है
ख्याल रखना अपना क्योंकि जैसे
तुम्हारी यादें मुझे रात रात सोने नहीं देती है।
वैसे ही कहीं मेरी यादें भी तुम्हें ना करे बेचैन
मेरी यादें कुछ ज्यादा ज़िद्दी और शैतान है
पर अगर करे वो तुम्हे ज्यादा परेशान तो
उनके सामने ही तुम एक आवाज़ देना मुझे।
मैं फिर से पकड़कर उन्हें ला जकड़ूँगा
उन्ही मोटी-मोटी ज़ंजीरों में यहाँ !