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Dr Javaid Tahir

Romance

4.9  

Dr Javaid Tahir

Romance

काश तुम आज होते

काश तुम आज होते

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काश तुम आज होते

काश तुम पास होते

न मोहताज हर एक शाम होती

न यादें तेरी बेलगाम होतीं

काश तुम आज होते

काश तुम पास होते।


न सांसों से महरूम होती निसबत

न लम़्हों से कोई गिला सी होती

न चांद तेरी कोई बात होती

न दिये के बुझने की आस होती।

न गिनता नसीब फ़लक के सितारे

न रूठी सी अब बरसात होती

निकलता नहीं दिन न कभी रात होती

काश तुम आज होते

काश तुम पास होते।


न दिखती चरागों के जलने की सिफ़फ़त

न ज़माने की कोई औक़ात होती

न होती फ़िकरे गुलशन मुझको

न बहारों के जाने की बात ह

ोती।

न आता कभी याद था एक नशेमन

बस हर बात पर तेरी बात होती

काश तुम आज होते

काश तुम पास होते।


न दिखता कोई अंधेरे मे साया

न चादर की सिलवट कोई याद होती

न परदे की आहट चौंका देती

न दरवाज़ा दहलीज़ याद रहती।

न आंखों से गिरता कोई मजबूर आंसू

न ज़माने मे कोई रुसवायी होती

काश तुम आज होते

काश तुम पास होते।


न मुफ़लसी मेरे कांधों पे चढ़ती

न कोई ज़रूरत ज़रुरी सी होती

ख़ुदाया मुझे कुछ तो देता

न था वो तो फ़िकरे दुनिया तो होती।


काश तुम आज होते

काश तुम पास होते।


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