काश तुम आज होते
काश तुम आज होते
काश तुम आज होते
काश तुम पास होते
न मोहताज हर एक शाम होती
न यादें तेरी बेलगाम होतीं
काश तुम आज होते
काश तुम पास होते।
न सांसों से महरूम होती निसबत
न लम़्हों से कोई गिला सी होती
न चांद तेरी कोई बात होती
न दिये के बुझने की आस होती।
न गिनता नसीब फ़लक के सितारे
न रूठी सी अब बरसात होती
निकलता नहीं दिन न कभी रात होती
काश तुम आज होते
काश तुम पास होते।
न दिखती चरागों के जलने की सिफ़फ़त
न ज़माने की कोई औक़ात होती
न होती फ़िकरे गुलशन मुझको
न बहारों के जाने की बात ह
ोती।
न आता कभी याद था एक नशेमन
बस हर बात पर तेरी बात होती
काश तुम आज होते
काश तुम पास होते।
न दिखता कोई अंधेरे मे साया
न चादर की सिलवट कोई याद होती
न परदे की आहट चौंका देती
न दरवाज़ा दहलीज़ याद रहती।
न आंखों से गिरता कोई मजबूर आंसू
न ज़माने मे कोई रुसवायी होती
काश तुम आज होते
काश तुम पास होते।
न मुफ़लसी मेरे कांधों पे चढ़ती
न कोई ज़रूरत ज़रुरी सी होती
ख़ुदाया मुझे कुछ तो देता
न था वो तो फ़िकरे दुनिया तो होती।
काश तुम आज होते
काश तुम पास होते।