STORYMIRROR

Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

खफा(गजल)

खफा(गजल)

1 min
287

कुछ वो खफा होते रहे,

कुछ हम खफा होते रहे, जिंदगी के

कीमती पल यूं ही फना होते रहे। 


बात कुछ भी न थी

वो समझ न सके, हम

शिकवों का बोझ ढोते रहे। 


हाथों में उनके देख कर पत्थर

भी हम शीशे के महलों में सोते रहे,

हिम्मत उनमें भी

मारने की न थी, हम अपने ही

हरे जख्मों को भगोते रहे। 


किस किस को इल्जाम दे

सुदर्शन, मानव अपनी जिंदगी

की कैद का, जब खुद ही मुजरिम

और खुद ही हाकिम

बन कर सजा भोगते रहे। 


फैलाते रहे, हाथ गले लगाने के लिए,

वो अपने फासले पर

अड़े रहे हम अपने फासले पर अड़े रहे। 


तामीज उनको कभी झुकने की नहीं थी,

हमारे झुकने पर

भी वो अकड़ते रहे। 


अपने थे जो वो भी बन

गए बेगानों की तरह, फासले

दीवारों की तरह यूं ही बढ़ते रहे। 


भाईचारा तो सीख लेता परिन्दों से तू इंसान,

वो मिल कर दाना चुगते रहे तुम मिल

कर भी बिखरते रहे। 


सोच सोच कर बुद्धि मालीन कर ली इंसान ने,

बुद्धिमान हो कर बुदिहीन की तरह यूं ही बिछुड़ते रहे। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance