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Ajay Singla

Classics Others

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श्रीमद्भागवत ४३ ;ब्रह्मा जी की रची हुई अनेक प्रकार की सृष्टि का वर्णन

श्रीमद्भागवत ४३ ;ब्रह्मा जी की रची हुई अनेक प्रकार की सृष्टि का वर्णन

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विदुर जी पूछें मैत्रेय जी से 

प्रजापति उत्पन्न हुए जब 

कैसे बढ़ाई सृष्टि ब्रह्मा ने 

कैसे मनु प्रजा वृद्धि करें तब। 


मैत्रेय जी कहें कि ब्रह्मा जी ने 

छाया से अविद्या उत्पन्न की 

तमोमय शरीर अच्छा ना लगा 

उन्होंने वो काया त्याग दी। 


उस काया को ग्रहण किया उन्होंने 

यज्ञ, राक्षस जो उत्पन्न थे उससे 

दौड़ पड़े ब्रह्मा को खाने 

अभिभूत हो वो भूख प्यास से। 


कुछ कहें खा जाओ इसको 

कुछ कहें रक्षा मत करो 

ब्रह्मा कहें मेरी संतान तुम 

तुम मेरा भक्षण मत करो। 


खा जाओ कहें जो वो यक्ष हुए 

राक्षस वो जो कहें रक्षा मत करो 

ब्रह्मा जी ने फिर रचे देवता 

उत्पन्न किया कामासक्त असुरों को। 


असुर ब्रह्मा जी के पीछे भागे 

भयभीत हो ब्रह्मा वहां से दौड़े 

श्री हरी के पास पहुंचे, कहें 

रक्षा करो मेरी प्रभु मोरे। 


भगवन ने तब कहा ब्रह्मा को 

इस काम कलुषित शरीर को त्यागो 

तुरंत ब्रह्मा ने शरीर त्याग दिया 

स्त्री रूप में परनीत हो गया वो। 


मधुर मधुर मुस्काती सुंदर स्त्री 

देख रही थी वो असुरों को 

उसे देख असुर मोहित हुए 

पूछें सुंदरी, तुम कौन हो। 


उस सुंदरी ने उन असुरों को 

अत्यंत कामासक्त कर दिया 

और उन मूढ़ असुरों ने 

रमणी समझ उसे ग्रहण कर लिया। 


ब्रह्मा जी ने कांतिमयी मूर्ति से 

गन्धर्व और अप्सराएं उत्पन्न कीं 

फिर भूत पिशाच उत्पन्न किये 

और साध्यगण, पितृगण भी। 


सिद्ध, विद्याचरों की सृष्टि की 

प्रतिबिम्ब से तब किन्नर उत्पन्न किये 

फिर उनसे अहि उत्पन्न हुए 

और उत्पन्न सर्प और नाग हुए। 


मन से मनुओं की सृष्टि की 

देवता कहें ये सुंदर सृष्टि 

ब्रह्मा को भी वो भाये थे 

ऋषिगण की थी फिर रचना की। 



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