घुमड़ते घन नदी तट और पवनचक्की
घुमड़ते घन नदी तट और पवनचक्की
आसमान में काले सफ़ेद बादल
ज़ोर शोर से उमड़ घुमड़ रहे है,
लगता है कि वर्षा होने वाली है
नदी में पाल ताने नाव लगी है।
लगता है कि उसे सद्य होनेवाली
वर्षा की कोई परवाह नहीं है।
नीचे धरा पर पेड़ों का झुरमुट
उसमें खड़ी है ऊँची पवनचक्की ,
शानदार भव्य तेजस्विता के साथ
वर्षा मेघों की अवज्ञा करती हुई।
दूर स्थित महल और गिरिजे को
धुंधला और निष्प्रभ बनाती सी।
नीचे की ज़मीन पर थोड़ी दूरी पर
पवनचक्की की ओर देखती खड़ी हैं
तीन नारी मूर्तियाँ श्वेत वसनों में।
सिर उनका ढका हुआ है वस्त्र से
वहाँ वे किस अभिप्राय से स्थित हैं
यह कौन जाने,कौन कहे ,कैसे कहे।
इस डच पवनचक्की चित्र के
चित्रकार हैं जैकब वैन रुईसडेल,
उनकी यह विश्वप्रसिद्ध पेंटिंग है
जिसमें सब डच तत्त्वों को जोड़ा है,
नीची ज़मीन ,पानी और विस्तृत नभ
जो अभिमुख हैं विशिष्ट पवनचक्की के।
सदियों से पवनचक्की का उपयोग है
आटे की चक्की चलाने में, पानी खींचने में ,
बिजली की मशीनों के लिये, उद्योगों में ।
पवन शक्ति की ऊर्जा गति ऊर्जा है
वायु के वेग से परिवर्तन होता रहता है
वायु की गति कभी मन्द कभी तीव्र होती है।
तेल कैनवास पर बना यह चित्र 1670 का है
वह समय डच पेंटिंग का सुनहरा काल था,
यह चित्र एम्स्टर्डम म्यूज़ियम में रखा हुआ है
इसमें प्रकाश और छाया का अच्छा चित्रण है,
सावधानी से किया सविस्तर विवरण विलक्षण है
यह पेंटिंग नहीं कुशल फ़ोटोग्राफ़ी लगती है।