अपना मूल स्रोत
अपना मूल स्रोत
ज्योति स्वभाव से जाती है
अपने उद्गम स्थान की ओर,
ज्योति का उद्गम है सूर्य,
अग्नि की लौ उठती ऊपर
अपने मूल स्रोत की ओर,
मोमबत्ती की लौ भी जायेगी
ऊपर की और ,
उलटी कर दें मोमबत्ती
तो भी लौ जायेगी
ऊपर की ओर।
पानी का स्रोत है समुद्र
सभी नदी नाले दौड़ रहे
समुद्र की ओर,
पानी नीचे की ओर बहता है
समुद्र की राह खोजता है।
ढेले को फेंको ऊपर की ओर
पर वह आता धरती की ओर,
ऊपर नहीं जाता
उसका उद्गम स्रोत है
नीचे की ओर।
जाने अनजाने भी मनुष्य
दौड़ लगाता चिर सुख की ओर,
जीव का कारण है ब्रह्म
जो है सुख आनन्द स्वरूप,
सारे सुख आत्मा में हैं
ब्रह्म से ही जगत बना ,
मूल सच्चिदानंद ब्रह्म में ही
सच्ची शान्ति मिलती,
मन में लानी होगी नम्रता
तब जायेगा अपने मूल की ओर ।