परीक्षा किस की
परीक्षा किस की
तिनका 2 जोड़ कर एक घर बनाया
कभी पानी से तो कभी खुन से सिंचा
घर संभले नारी से, गृह लक्ष्मी लाया
गृहस्थी की चल पड़ी सवारी बढने लगे
खर्चे तो मेहनत से शरीर मजबूत बनाया
अब बारी थी दो से तीन हो जाने की
बारी थी अब पापा कहलाने की
गृहस्थ जीवन को सजाया और मुझे पिता बनाया
आंगन में खुशहाली और किलकारी थी
कब पौधा पेड़ बन गया फुल खिलने की बारी थी
बेटा बनेगा दुल्हा अब ससुर बनने का मानस बनाया
तभी अचानक आया काला साया और सब बहा ले गया
मातम ही मातम पसरा था चंहू और लाश पडी़ थी
दुल्हा नहीं लाश बन के मां का लाल पडा़ था
रो रहा कलेजा बाप का, बहन बेसुध पड़ी थी
परीक्षा किस की थी जो चला गया या जो रह गया समझ ना आया।।