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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Romance Classics

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Amit Singhal "Aseemit"

Abstract Romance Classics

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी

मैं तुम्हें फिर मिलूंगी

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बरसात की रातें किसी तरह गुज़र रही थीं।

झमाझम बूंदें बहुत ज़ोरों से बरस रही थीं।


एक रात मैं छतरी लेकर बाहर कुछ लेने गया था।

अचानक मेरे क़दम थम गए, थोड़ी दूर ही गया था।


मैंने देखा एक सुंदर सी लड़की सड़क किनारे खड़ी थी।

उसके पास छतरी न थी, पूरी तरह भीगी हुई खड़ी थी।


जाने क्यूँ उसके पास जाकर ऐसे ही खड़ा हो गया था।

मैं छतरी उसके सिर के ऊपर करके खड़ा हो गया था।


उसकी बस आकर रुकी, वह लड़की उसमें चढ़ने लगी।

अचानक अपना हाथ बढ़ाकर जैसे मुझे कुछ देने लगी।


वह तो एक काग़ज़ का मुड़ा तुड़ा छोटा टुकड़ा सा था।

मैं तो जैसे उसको बिना देखे फेंकने ही वाला था।


मैंने गौर किया और देखा कि वह तो वही काग़ज़ था।

मुझे याद आया छतरी में खड़ी जिसमें कुछ लिखा था।


"तुमने मदद की, वादा है, मैं तुम्हें शुक्रिया ज़रूर कहूंगी।

माँ बीमार हैं, अभी जल्दी में हूं, मैं तुम्हें फिर मिलूंगी।"


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