ख़ूबियों से ही नहीं होती
ख़ूबियों से ही नहीं होती
ख़ूबियों से ही नहीं होती मोहब्बत सदा,
किसी की कमियों से भी कभी प्यार हो जाता है।
किसी की अदाओं से दिल हो जाता घायल,
किसी के रूठने से कभी इश्क़ बेशुमार हो जाता है।
कोई नहीं कह सके, किसको क्या भा गया,
किसी का हँसना या रोना देखकर दिल खो जाता है।
मासूमियत से भरी निगाहें जो उसकी देखीं,
उसकी निगाहों से नज़रें हटाना मुश्किल हो जाता है।
कुछ ही देर पहले कोई अजनबी ही तो था,
थोड़ी सी बातें क्या हुईं, वही ग़ैर अपना सा हो जाता है।
सुकून ढूँढने को उसकी बाँहों में जो पनाह ली,
फिर कहीं और चैन मिले, यह नामुमकिन हो जाता है।
(शुरू की दो पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास जी की हैं)