द्रोपदी
द्रोपदी
जन्म लेते मार देते थे पहले
अब जीते जी मार रहे हो
हमें तहज़ीब सिखाते सिखाते
खुद जानवर बन गए हो
बंद कर दो उस माता को पूजना
अगर समझते हो औरत को कोई खिलौना
इस पुरुष प्रधान देश में
ज़लील भी हम होते हैं और बदनाम भी
हुआ होगा महल के बंद दरवाजों में उस वक़्त
आज औरत का चीर हरण सरे आम होता है
इज़्ज़त से ज़्यादा कभी कुछ और माँगा भी नहीं था
ना तुमने दी और ना अब हमें उम्मीद है।