श्रीमद्भागवत - ५५; विभिन्न गतिओं और भक्तियोग की उत्कृष्टता का वर्णन
श्रीमद्भागवत - ५५; विभिन्न गतिओं और भक्तियोग की उत्कृष्टता का वर्णन


जो पुरुष घर में रहकर ही
पालन करे गृहस्थ धर्मों का
अर्थ, काम का उपभोग करे वो
उन्ही का है अनुष्ठान वो करता|
कामनाओं से मोहित रहता वो
भागवतधर्म से विमुख हो जाता
देवता, पितरों की पूजा करता
चन्दलोक में वो है जाता|
जब पुण्य क्षीण हो जाते
फिर इसी लोक में लौट वो आता
प्रलयकाल में सब लोक लीन हों
प्रभु में वो भी लीन हो जाता|
जो पुरुष अपने धर्मों का
उपयोग न करे भोग के लिए
भगवान की प्रसन्नता के लिए ही
धर्मों का अपने पालन वो करे|
सर्वथा शुद्ध चित्त हो जाये वो
हरि को वो प्राप्त हो जाये
अत: आप भी हे माता जी
मन को हरि चरणों में लगाएं|
भगवान के प्रति भक्ति योग से
वैराग्य, ज्ञान की प्राप्ति हो जाती
सिर्फ भगवान का दर्शन हो तब
पुरुष की तब मुक्ति हो जाती|