मेरा भी था मीत सखी
मेरा भी था मीत सखी
रोज रात आँखों में आकर करता नृत्य अतीत सखी।
एक बहुत ही दिल से प्यारा मेरा भी था मीत सखी।
याद अभी तक प्रथम छुअन है
तन मन अब तक महक रहा।
सुर्ख लबों से जहाँ छुआ था
सच कहती हूँ दहक रहा।
जैसे बात अभी कल की पर गया साल भर बीत सखी।
एक बहुत ही दिल से प्यारा मेरा भी था मीत सखी।
मुझको जब ये धवल चाँदनी
आँगन में नहलाती है।
महक साँस में तब पुरवाई
उसकी लेकर आती है।
उर से निकल रागिनी भी फिर गा उठती है गीत सखी।
एक बहुत ही दिल से प्यारा मेरा भी था मीत सखी।
लोक लाज के कारण मैंने
उसके दिल को तोड़ दिया।
उसकी राहों तक से जाना
बिल्कुल मैंने छोड़ दिया।
चुपके चुपके आँसू बनकर बहती है अब प्रीत सखी।
एक बहुत ही दिल से प्यारा मेरा भी था मीत सखी।
कहने वाले सच कहते हैं
भाग्य बिना है मेल नहीं।
आज समझ में आया मुझको
प्यार प्यार है खेल नहीं।
जीत उसे मैं हार गयी वह गया हारकर जीत सखी।
एक बहुत ही दिल से प्यारा मेरा भी था मीत सखी।

