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pooja bharadawaj

Abstract Tragedy Classics

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pooja bharadawaj

Abstract Tragedy Classics

जब ओढ़ तिरंगा आऊंगा

जब ओढ़ तिरंगा आऊंगा

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मां मैं जब तेरे द्वार पर लाल तिरंगा ओढ़ आऊंगा

हे मां मुझे माफ़ करना कर देना

अब तेरे आंचल में न छिप पाऊंगा

तेरे हाथ से एक निवाला भी न खा पाऊंगा

नहीं जानता क्या बीतेगी तेरे दिल पर 

जब मैं ओढ़ तिरंगा आऊंगा


हे पिता मुझे माफ़ करना

मैं अब आपका सहारा ना बन पाऊंगा

तुम को बीच राह में अकेला ही छोड़ जाऊंगा

कितने टूट जाओगे तुम 

जब मैं तेरे द्वार पर ओढ़ तिरंगा आऊंगा


बहना तेरी राखी की लाज भी न रख पाऊंगा

अपनी भी सारी जिम्मेदारी तुझे मैं दे जाऊंगा

जब थाल में राखी सजाए रहती थी तुम द्वार पर

अब तेरे इंतजार को भी अपने साथ ले जाऊंगा

अपनी भारत माता की रक्षा के लिए शहीद में हो जाऊंगा

क्या बीतेगी तुम पर जब ओढ़ तिरंगा आऊंगा


हे प्रिय तुम भी मुझे माफ करना

जब मैं तुमको विवाह कर लाया था

जीवन भर साथ निभाने का वचन मैनें लिया था

अब तेरे इस माथे का सिंदूर

हाथों में चूड़ियों की खन खन

चेहरे की मुस्कान भी अपने साथ में ले जाऊंगा

क्या बीतेगी तुम पर जब ओढ़ तिरंगा में आऊंगा


अपनी इस धरती मां के लिए

 हंसते-हंसते शहीद हुए हो जाऊंगा

आखरी बार तेरे द्वार पर मां मैं ओढ़ तिरंगा आऊंगा।

जय हिंद जय भारत।


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