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pooja bharadawaj

Abstract Drama

4  

pooja bharadawaj

Abstract Drama

एक परिंदा

एक परिंदा

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दुनिया की भीड़ में खड़ा परिंदा

ढूंढे अपनी परछाई को

ना जाने कौन सी भीड़ में गुम हुई

ढूंढे अपनी ही तन्हाई को


जहां भी जाता 

फंस जाता दुनिया के मकड़ जाल में

कभी छटपटाता कभी तिलमिलाता

ना निकल पता उस माया जाल से

क्योंकि वो तो है इस दोगली दुनिया का हिस्सा

फिर क्यों मचल जाता 

इससे बाहर आने को 

दुनिया की भीड़ में खड़ा परिंदा 

ढूंढता अपनी परछाई को


ना जाने कौन से मोड़ पर

ये समाज अपना नया रूप दिखलाएगा

फिर अपनी मंजिल को पाने की खातिर

वो अपने आप को आग में जलाएगा 

तपती धरा तपता गगन

ना जाने कब तक उसको झुलसाएगा

पर हौसला बुलंद उसका 

एक दिन वह अपनी नई राह बनाएगा 

चमकेगा उस का सितारा आसमान में

 ऐसी उड़ान वह परिंदा भर जाएगा

ढूंढ लेगा वह अपनी परछाई को 

अपना नाम वह फलक पर लिख जाएगा



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