.... हर पन्ने पर तलाशते रहे...
.... हर पन्ने पर तलाशते रहे...
ज़िक्र मेरे नाम का हैं क्या तुम्हारी कविता में
हर पन्ने पर तलाशते रहे, ढूंढते रहे अल्फ़ाज़ों में।
हर रचना में मुझे दिखाई दे रहा थी मेरा छबि
मेरे बारे में इतनी सारी बातें इकट्ठा की तुमने कभी।
हैरत में रह गयी हर लफ़्ज़ों को बारीकी से पढ़कर
मेरा प्रतिबिंब उमड़ रहा था हरेक पन्ने पर।
तुम्हारे क़लम की तारीफ़ में दो शब्द मैं भी लिखना चाहूँ
बेजोड़ रहे रिश्ता अपना, तेरे प्यार का इतिहास मैं बन जाऊँ।

