शरद पूर्णिमा की रात
शरद पूर्णिमा की रात
आसमाँ में श्वेत चाँद पूरा
और हमारा रिश्ता अधूरा
इस चाँद को देखने के बाद
अक्सर याद आता है मुखड़ा तुम्हारा।
याद है बाँहों में तुम्हें भरकर
देर रात तक वो चाँद को ताकना
आती है जब भी ये शरद पूर्णिमा की रात
बस, तुम्हारे यादों की सिलवटें खोलना।
कभी चाँद से या चाँदनी से
करते रहते हैं अकेले में बातें
वो भी पूछते रहते हैं तुम्हें
और पूछते हैं कहाँ खो गई वो रातें।
पलकों के किनारे रहती हैं
तुम्हारी यादों की झरती बूंदें
आ जाओ, देख लूँ तुम्हें इक बार
कहीं इसी तमन्ना में मेरी आँखें ना मूंदें।