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गीता केदारे

Abstract

4.9  

गीता केदारे

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जिंदगी है बहने दो

जिंदगी है बहने दो

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निकल पड़ी हूं

खुद की तलाश में 

खोज रही हूं अपनेआप को

खिलखिलाहट में 

कभी दर्दनाक चीखों में

और कराहती रातों में।


नहीं पसंद किसी को

चेहरा मेरा

टुटे हुए आईने के टुकड़ों में

बिखरा पड़ा हुआ। 


अश्कों संग आँखों से 

दर्द का सहारा लिए बहती हैं 

हुकुमत

ब्याह कर दिया था 

जो सजाधजा शरीर 

उसमें तुम्हारे लिए जो मन था

उसकी खोज जारी है। 


अपने हरेक साँस के 

पल का हिसाब 

और हमारे सारे सुखों का हिस्सा 

जारी है हरेक कतरे का बहना।


जिंदगी तू थमना नहीं 

निकल पड़ी हूं 

खुद की तलाश में। 


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