STORYMIRROR

गीता केदारे

Abstract

3  

गीता केदारे

Abstract

जिंदगी है बहने दो

जिंदगी है बहने दो

1 min
376

निकल पड़ी हूं

खुद की तलाश में 

खोज रही हूं अपनेआप को

खिलखिलाहट में 

कभी दर्दनाक चीखों में

और कराहती रातों में।


नहीं पसंद किसी को

चेहरा मेरा

टुटे हुए आईने के टुकड़ों में

बिखरा पड़ा हुआ। 


अश्कों संग आँखों से 

दर्द का सहारा लिए बहती हैं 

हुकुमत

ब्याह कर दिया था 

जो सजाधजा शरीर 

उसमें तुम्हारे लिए जो मन था

उसकी खोज जारी है। 


अपने हरेक साँस के 

पल का हिसाब 

और हमारे सारे सुखों का हिस्सा 

जारी है हरेक कतरे का बहना।


जिंदगी तू थमना नहीं 

निकल पड़ी हूं 

खुद की तलाश में। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract