एक कथा: माँ सीता (स्वयंवर)
एक कथा: माँ सीता (स्वयंवर)
कठिन परीक्षा सिय को पाने की,
राजकुमार धुरंधर आए थे,
शिव धनुष तोड़ना शर्त रखी थी,
जनक भी कुछ घबराए थे,
स्वयंवर के इस अवसर पर,
आए गुरु संग राम लखन,
सिय की नज़र मिली राम से,
दे दिया सिया ने राम को स्वमन,
शिव से अर्चन करती थी वो,
धनुष ना टूटे अन्य किसी से,
यदि तेरी सच्ची भक्त हूँ मैं तो,
बंधन मेरा जुड़े राम से,
शिव ने जैसे सुन ली सिय की,
धनुष ना टूटा अन्य किसी से,
विश्वामित्र के आदेश को पाकर,
जिसे राम ने तोड़ा सहज भाव से,
देवता सब हर्ष मनाते थे,
राम जयगान ही गाते थे ,
भ्राता की गरिमा देख लखन,
गर्व में फूले जाते थे,
दिव्य समय वो था धरती पर,
जब सिय वरमाला ले आई थी,
झुकी हुई पलकों से उन्होंने ,
राम को जयमाला पहनायी थी,
जयजयकार हुआ दोनों का,
समस्त देव हर्षाने लगे,
देख मिलन अद्भुत गगन से,
सुमन देव बरसाने लगे।