ॠषिवर परशुराम
ॠषिवर परशुराम
फैला व्यभिचार चारों ओर मातृभूमि सत से अनजान,
तब विष्णु के अवतार में जन्म लिया परशुराम भगवान ।।
मचा था हा हा कार, आतताई कर रहे थे अत्याचार हैवान।
तब छठा रूप धरि परशुराम किये जन जन का कल्याण ।।
जमदग्नि-रेणुका पुत्र भृगुवंश हुआ त्रेता युग शुरूआत।
ब्राह्मणों के थे कुल गुरु जन्म अक्षय तृतीया वैशाख।।
आदेशावतार ,शास्त्र, शस्त्र के ज्ञाता भीष्म, कर्ण, द्रोण देय ज्ञान।
दानी परशुराम जी ने कश्यप ऋषि को दिये मातृभूमि धरा दान।।
पृथ्वी पर किये इक्कीस -इक्कीस बार अत्याचारी क्षत्रियों का विनाश।
स्वयं तपस्वी बन गये, मेहन्द्रगिरी पर किया निवास ।।
जटा जुटी ऋषि वीर अनोखा अद्भुत सा तेज तरार।
भीषण क्रोध इनमें था व्याप्त गणपति पर किये फरसा प्रहार।।
धरती का मान दिया, मुक्त कराकर कामधेनु को ।
दुष्ट रिपुओं का संहार किया, मार कर आतताइयों को।।
जब ध्यानमग्न पिता को, हैहय कार्तवीर्य ने काट दिया ।
प्रण लेकर दुष्टों के शवों से धरती इक्कीस बार पाट दिया ।।
शिव से परशु पाकर राम से परशुराम नाम मिला।
कल्पकाल तक रहने का जिनको विष्णु जी से वरदान मिला ।।