मनीभाई देशाई
मनीभाई देशाई
माता रमीबहन, पिता भीमभाई किसान के घर एक देशप्रेमी पधारे
सताईस अप्रैल उन्नीस सौ बीस को ये कोस्मादा, गुजरात अवतारे।
बचपन में ही मां ने पढ़ा-लिखाकर अपने लाल को सयाना बनाया।
देश सेवा का जज्बा मां रमीबहन ने बचपन में ही जगाया।
बड़े होकर स्वतंत्र जीवन धारा को छोड़कर स्वदेश प्रेम को अपनाया।
आजीवन निर्धनों की सेवा में अपना तन मन धन लगाया।
दृढ़ संकल्प रहकर कार्यक्षेत्र में कर्मठता का प्रभाव दिखलाया।
शहरी शिक्षा के प्रभाव को छोड़कर ग्रामीण परिवेश को अपनाया।
रमीबहन देशाई का लाल बचपन से ही सेवा भाव का दिवाना था।
उसकी देश सेवा,मानव प्रेम का लोहा बापू गांधी ने भी माना था।।
इंजीनियर छोड़, ग्रामीणों में विकास की अलख जगाई थी।
निर्धन गांव वालों को आर्थिक विकास की राह बताई थी।।
गांधी जी संग देश आजादी का आंदोलन चलाया था ।
मातृभूमि की रक्षा खातिर निर्धनों की सेवा को अपनाया था।।
उरली ग्राम उत्थान-विकास में अपना सारा जीवन समर्पित किया
प्रकृति उपचार, बागवानी, पशु चिकित्सा में सर्वस्व अर्पित किया।
मानव सेवा के साथ साथ पशु चिकित्सा सेवा को भी अपनाया।
बीफ की आधुनिक व्यवस्था से पशुओं को रोगमुक्त करवाया।
देश भक्ति का परचम अपना दांडी मार्च में दिखलाया था।
घर-घर नमक पहुंचा कर मनीभाई ने अपना फर्ज निभाया था।।
देश सेवा के लिए सरकार से पद्मश्री सम्मान पाया।
लोकसेवा में "रेमन मैग्सेसे पुरस्कार" अपने नाम करवाया।।
गांधीवादी, सामूदायिक मूल्यों भरा सादगी जीवन अपनाया।
चौदह नवंबर उन्नीस सौ तीरानवे को ये सेवाभावी स्वर्ग समाया।।