स्वार्थ
स्वार्थ
ना हाथ पकड़ तू स्वार्थ का
दोस्त बन परमार्थ का
क्या रखा है अपने पराए में
जी तू सब्र के साए में
इस जहां में कोई किसी का नहीं
अपने अपने किरदारों में हर कोई है सही
क्या लाया था हाथ में
जो तू लेकर जाएगा
जैसे कर्म करेगा बंदे
वैसा ही तू पाएगा
लालच की डगर को छोड़कर
अपने लिए तो पुण्य कमा
सच की राह पर चलकर
मिलेगा तुझे एक अनोखा जहां
ऊंच-नीच का भेद छोड़कर
सबको तू अपना कर देख
अंदर से अपने स्वार्थ को
निकाल बाहर तू फैंक।