चंद अशआर
चंद अशआर
होने को कोई सच्चा सहारा नही होता।
ख़ुद से ज़्यादा कोई प्यारा नहीं होता।
गरज ख़त्म हुई फ़ितरत भी बदल गई जहाँ
जीवन में ऐसे ही कोई हमारा नही होता।
समाज की आबोहवा इतनी बदल चुकी
कहीँ भी सुखी रहने का इशारा नहीँ होता।
एक को मनाऊँ तो दूजा ख़फ़ा हो जाये
ऐसे रिश्तों के साथ तो गुजारा नही होता।
लहू के रँग भी तो जो फ़िके पड़ चुके हैं
क्योंकि प्यार का रंग करारा नही होता।
साथ निभाया मैंने हरेक रिश्ते में प्यार का
क्या करूँ सफ़ल भाईचारा नही होता।
ऊँची इमारतों में सीमेंट का दिल लिये बसते जो
कॉन्क्रीट के मकानों में चौबारा नहीं होता।
कुछ लोगों के लिये आँसू सिर्फ़ पानी है
इनके लिये समंदर भी ख़ारा नही होता।
रेणू कभी न समझेगी इनकी मक्कारियाँ
इसको कोई कभी भी गँवारा नही होता।