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Dhan Pati Singh Kushwaha

Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Classics Inspirational

आत्मघाती विचार-विकृत मानसिकता

आत्मघाती विचार-विकृत मानसिकता

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जीवन के संघर्ष से जो, मान लेता है हार,

त्याग वीरता कायरता, करता है स्वीकार।

अपनी चादर के अनुरूप, जो न फैलाए पांव,

आत्महत्या धूप को, समझ लेता शीतल छांव।

सबको ही तो है होता है, निज जीवन से प्यार,

विकृत मानसिकता देती, है आत्मघाती विचार।


अनबूझ पहेली है ये जीवन, तथ्य बड़ा है स्पष्ट,

ज्यों-ज्यों बढ़ती उम्र हमारी, बढ़ते जाते हैं कष्ट।

खुद और खुद का लक्ष्य भूल, पाल लेते हैं लालसाएं,

महज दिखावा सच से ज्यादा, देता बहु समस्याएं।

और भुला हम निज शक्ति, निर्बलता लेते स्वीकार,

विकृत मानसिकता देती, है आत्मघाती विचार।


हम कितने पानी में कब हैं? लेते नहीं हैं थाह,

आत्मश्लाघा के चक्कर में, लेते गलत सी राह।

निज दुर्गुण पर डाल के पर्दा, चाहते वाह-वाह,

पर्दा हटते जब सच आता, उठता हृदय कराह।

जीवन रूपी सागर को, भीरू कर न पाते पार,

विकृत मानसिकता देती, है आत्मघाती विचार।


जीवन अपना निर्णय अपने, करें स्वयं ये चिंतन,

थाती है पूरे समाज की, अपना तन और जीवन।

ऋण समाज का है बाकी, अब तक जो भी लिया,

बेईमानी रणभूमि त्याग, जब कर्ज अदा न किया।

इस तन रूपी संसाधन के जग में, हैं उपयोग हजार,

विकृत मानसिकता देती है, आत्मघाती विचार।


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