तितिक्षा
तितिक्षा
अलंकार हो ऐसा
जीवन रूपी सिरमौर कंचन सा जान पड़े!
शोर करे विपदा या आकर रहे
मौन खड़े!!
विकट परिस्थिति निकटतम आयी
दंभ धरे!!
रेत की भाँति बंधुगण भी फिसल
हों दूर खड़े!
स्वपोषित तितिक्षा हीं तब मार्ग
नियोजित करती है..
टिका रहा था वह पौरूष यह बता
इतिहास यूँ ही तो गढ़ती है!
जिजीविषा की सारथी बन
तितिक्षा हीं तो चलती है!