STORYMIRROR

Pushp Lata Sharma

Abstract

4  

Pushp Lata Sharma

Abstract

न्याय व्यवस्था

न्याय व्यवस्था

1 min
447

नजर बंद है न्याय व्यवस्थाखोज रही है न्याय 

इज्ज़त की उड़ रहीं धज्जियाँ चौराहे पर आज।

बाँट रहा कोने-कोने को कैसा हुआ स्वराज ? 


गाली, गोली, गली-गली मेंसच दिखता असहाय

फूल रही है यहाँ शान सेभ्रष्टाचारी बेल।

आडम्बर अब क़दम-क़दम पर  दिखा रहा है खेल।

नई पौध पढ़ रही वक्त सेनफ़रत का अध्याय।


झूठी कसमों में उलझे हैं गीता और कुरान।

सच्चाई, सौदेबाजी से पाती है पहचान।

रक्त सने हाथों में जीनाजीवन का पर्याय।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract