न्याय व्यवस्था
न्याय व्यवस्था
नजर बंद है न्याय व्यवस्थाखोज रही है न्याय
इज्ज़त की उड़ रहीं धज्जियाँ चौराहे पर आज।
बाँट रहा कोने-कोने को कैसा हुआ स्वराज ?
गाली, गोली, गली-गली मेंसच दिखता असहाय
फूल रही है यहाँ शान सेभ्रष्टाचारी बेल।
आडम्बर अब क़दम-क़दम पर दिखा रहा है खेल।
नई पौध पढ़ रही वक्त सेनफ़रत का अध्याय।
झूठी कसमों में उलझे हैं गीता और कुरान।
सच्चाई, सौदेबाजी से पाती है पहचान।
रक्त सने हाथों में जीनाजीवन का पर्याय।
