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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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नजर

नजर

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जिसकी होती जैसी नजर

उसकी होती वैसी कदर


जो देखता अच्छाई-घर

कर्म करता बहुत सुंदर


जिसकी होती बुरी नजर

जूते खाता वो घर-घर


जिसकी होती गलत नजर

वो होता एक निशाचर


जिसकी होती साफ नजर

वो होता एक अच्छा नर


रखते जो अच्छी नजर

वो बनते जीवन में निर्झर


बुरी नजर के रखते जो सर

वो पाप कर्म का रखते हुनर


जिनके होती पारदर्शी नजर

वो बनते जिंदगी में समंदर


जो शख्स रखते सही नजर

उन्हें मंजिल मिलती हर शहर


खुद पे रखते ईमानदार नजर

उनके लग जाते नभ के पर


उनकी होती सफल डगर

जिनकी होती शांत नजर


जिनकी होती चंचल नजर

टिक न पाते कहीं पल भर


जिनकी होती नेगेटिव नजर

वो जिंदा बन जाते मुर्दाघर


सदा रखो पॉजिटिव नजर

हर शूल करेगी ये बेअसर


सफलता का मिलेगा वर,

रखो लक्ष्य पे सटीक नजर


जिनकी होती तिरछी नजर

वो टूटते रहते है, हर प्रहर


जिनकी होती नियंत्रित नजर

वो बन जाते सुनामी लहर


अपने उद्देश्य को देते पूरा कर

जिनकी होती अविराम नजर


पिघल जाते है, फौलादी पत्थर

जिनकी होती पक्की नजर


रख साखी एक मजबूत नजर

फ़लक का भी नीचा होगा सर



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