STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

पत्थर में भगवान

पत्थर में भगवान

1 min
1.7K

ये महज विश्वास है

कि पत्थर में भगवान है,

परंतु यही विश्वास हमें

बताता भी है

भगवान कहाँ है?

तभी तो हम मंदिर, मस्जिद

गिरिजा, गुरुद्वारों के 

चक्कर तो लगाते हैं,

परंतु कितना विश्वास कर पाते हैं।


विडंबनाओं पर मत जाइये

अपने हर कठिन, 

मुश्किल हालात के लिए 

बिगड़े काम के लिये

भगवान को ही दोषी ठहराते हैं,

अपनी खुशी में भगवान को

शामिल करना तो दूर 

याद तक नहीं करते,

सारा श्रेय खुद ले लेते हैं।


जिस भगवान का हम

धन्यवाद तक नहीं करते

कष्ट में उसी को याद भी करते हैं,

पत्थर के भगवान से

जिद करते, अड़ जाते हैं

विश्वास करके भी नहीं करते।


क्योंकि हम

खुद पर भी विश्वास कहाँ करते?

हमारे अंदर भी तो

भगवान बैठा है

यह सब जानते हैं,

उस पर जब हम 

विश्वास नहीं करते,

तब पत्थर के भगवान पर

विश्वास कैसे जमा पाते?

हम तो बस औपचारिकताओं में

जीते जीते मर जाते,

अपनी पहचान भी मिटा जाते।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract