रूह तक का रास्ता बहुत लंबा था
रूह तक का रास्ता बहुत लंबा था
जब ज़िन्दगी से तल्ख़ कुछ तजरबे हासिल हुए ,
तब कहीं इन सुर्ख़ रू लोगों में हम शामिल हुए !
बात करने को थी अंदर इक ख़मोशी यूँ बेक़रार ,
और बाहर के शोर में दुनिया के सब ग़ाफ़िल हुए !
आए थे दुनिया में जब तो ज़ेहन बिल्कुल पाक था ,
अब के लोग और हसद तो बाद में यहाँ दाख़िल हुए !
यूँ मयस्सर हुई थी ज़माने की हमें हर शै भी मगर ,
जब किया हमने किसी से इश्क़ तब भी कामिल हुए !
रास्ता लंबा था इतना कि रूह तक जाता भी कौन,
बेहिसी के दौर में सब जिस्म पर फिजूल माइल हुए !