पतंग
पतंग
आसमां छूती वो पतंग
अचानक कटी और
गिरने लगी अनंत
ढूंढती कोई सहारा
पाने के लिए कोई
नया वृक्ष या स्तंभ
का छोर या किनारा
तभी सामने आई
एक नई परीक्षा
बारिश की बूंदें
भिगोती रही उसका तन
साथ ही डूबता रहा
उस छोटे बालक का बेचैन मन
पर धूप भी थी जैसे तैयार
पतंग को पोंछकर और सुखाकर
बालक के चेहरे पर मुस्कान खिलाकर।
सूरज की तप्त किरणों ने दिलाया अहसास।
पतंग भी थी बेकरार अब दिखाने आंखें
उन बादलों को जिन्होंने फैलायीं थी बाहें
और लपेटा था उसकी डोर को वृक्ष की ऊंचाई में।
पर हवा ने भी नाप ली डोर की गहराई ।
सुलझाने लगी अब पतंग भी बालक के सपने।
हर पतंग को चाहिए एक डोर
और डोर को चाहिए
बालक की उंगलियों के कोमल छोर।
