माँ तुम्हारी हँसी
माँ तुम्हारी हँसी
मां तुम्हारी बिना रंग रोगन वाली बातें
भर देती थी मन में बहुत सा जोश ।
और तुम्हारी दबी हुई हंसी
खुलकर करती थी खुशी का आगाज ।
तुम्हारे गुस्से में थी जो मिठास
जून की दोपहरी में मिल गई हो जैसे सांझ ।
अनसुनी रह गई थी जो तुम्हारी कुछ आवाज
आती हैं याद जैसे कुछ अनछुए साज ।
कभी अपने ही लहजे में सुनती हूं
प्रतिध्वनित तुम्हारे वो खोये अहसास ।
समय के उस छोर पर मिलोगी जब
पूछूंगी तुमसे तुम होना ना नाराज ।
क्या उस पार भी तुम्हें पता था ?
मैं तुम जैसी ही बन गई धीरे धीरे
तुम सा चेहरा और तुम्हारे से जज़्बात।
