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Baman Chandra Dixit

Abstract

4.5  

Baman Chandra Dixit

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राम नहीँ बनना है

राम नहीँ बनना है

1 min
320


एक इनसान ही हूँ मैं

मुझे इंसान बने रहना

राम नहीँ बनना है मुझे

भगवान नहीँ बनना।।

किसी ने साजिस रची

किसी ने बचन दे दिया

किसी ने लकीरें खींची

किसी ने मर्यादा कह दिया

कौन सोचेगा क्या, सोचकर

अपनी सोच न बदलना।

राम नहीँ बनना है मुझे

भगवान नहीँ बनना।।


कुछ रावणपन है मुझमे

कुछ रामपन भी है

बहुत खामियों के बीच

कुछ खरापन भी है

लोभ मोह क्रोध बोध

बाधाओं को है भेदना।

राम नहीँ बनना है मुझे

भगवान नहीँ बनना।।


हे राम रघु कूल तिलक

करो कृपा मैं हूँ मूरख बालक

माया मोह लोभ क्षोभ से

मुक्ति की वरदान देना

हमें सत्य न्याय की राह पर

चलने की हिम्मत देना।

राम नहीं बनना है हमें

भगवान नहीँ बनना।।


रावण को जलाने का 

उत्सव मनाते है जरूर

रावण के अंदर मौजूद

अनगिनत गुणों को 

अनदेखा करते हैं हर बार ।

क्यों नहीँ हमें रावण का

सद्गुणों को आहरण करना!

राम नहीँ बनना हमें

भगवान नहीँ बनना।।

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