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S N Sharma

Abstract

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S N Sharma

Abstract

मोम सी जलती रही।

मोम सी जलती रही।

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शाम थी कितनी सुहानी इस तरह ढलती रही।

दिल में जैसे याद तेरी मोम सी जलती रही।


सफीना लेकर भंवर में खुद ही जा पहुंचे थे हम।

आखरी थी वो कहानी जो खत्म हो चलती रही।


हर तरफ फैला समंदर और सन्नाटा पसरता

प्यासे बेचैन मन को जल की कमी खलती रही।


सीप मोती से भरी है किंतु है वह अतल जल में।

नकारा तट पर वह गरीबी हाथ ही मलती रही।


थी भले ही दूर मंजिल कहने को मंजिल तो थी

मंजिलों की जुस्तजू में हमारी जिंदगी चलती रही



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