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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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असमंजस

असमंजस

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आखिर ऐसा क्यों हो जनाब?

जब भी मिलते हो

बड़े असमंजस में दिखते हो,

आखिर खुद को कभी समझाते क्यों नहीं

जीने के अपने सिद्धांत बदलते क्यों नहीं

अपने जीवन के रंगढंग बदलते क्यों नहीं?

इस असमंजस से जितना जल्दी हो

निकल कर बाहर आ जाओ,

बेवजह खुद ही नहीं

औरों को भी बेवकूफ न बनाओ।

माना कि बड़ा कटु अनुभव है तुम्हारा

अपने और अपनों के साथ,

पर इसमें तुम्हारा भी है पूरा हाथ,

अपनी ही बोई फसल अब काट रहे हो

फिर भी दुनिया को गुमराह कर रहे हो,

बड़े गुरुर में रहते हो जो हर समय तुम

फिर भी दुनिया को दोषी ठहराकर 

खुद बड़ा पाक साफ बन रहे हो,

घड़ियाली आँसू बहाकर सहानुभूति चाह रहे हो।

पर अब तो बेनकाब हो चुके हो तुम

हमारी नज़रों में भी आ गये हो तुम,

गुमराह करते करते खुद गुमराह होकर

सबसे बड़े बेवकूफ बन गए हो तुम।

अच्छा है कि अब हम सब के 

दिमागी बल्ब रोशन हो गये हैं

भगवान भला करें तुम्हारा

हम सब तुमसे दूर हो रहे हैं

तुम्हारे चक्रव्यूह में फँसने के बजाय

खुद को बचाने के लिए कमर कस चुके हैं

तुम्हारे साथ रिश्ता रखकर

हम भी बहुत कटु अनुभव कर रहे हैं,

अब तुम अपना जानो समझो

तुमसे हम रिश्ता भी तोड़ रहे हैं,

अपने को आजाद कर रहे हैं। 



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