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Dhara Viral

Fantasy Inspirational

3.7  

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वो मेरा अक्स था

वो मेरा अक्स था

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मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे सुन रहा है

हां हां सचमुच मुझे ऐसा लगा।

विश्वास नहीं हो रहा था कि क्या

सचमुच मुझे कोई सुन रहा है ?


ना जाने मन में कितनी ही अनकही

बातें भरकर घुम रही हुं मैं,

कभी किसी का‌ दिल ना दुखे,

इसी के लिए उपाय ढूंढ रही हुं मैं,

किसी को‌ मुझसे शिकायत ना होने

पाए इस बात को ध्यान रखकर चल रही हुं मैं,


कभी बच्चों के साथ खेल कर

तो कभी बड़ों का मन

टटोल कर,

कभी जीवनसाथी से बात करके

तो कभी दोस्तों को याद करके,


हर रोज़ खुश होने की कोशिश करके

अगले दिन के लिए खुद को तैयार करती हुं,

पर लगता है कि कुछ कसर बाकी रह गई है सबको

खुश रखने में,


बस यही सोच सोच कर अक्सर

मैं घबरा ज

ाया कर करती हुं,

पर किससे कहूं ?

क्या और कैसे कहूंगी ? ये सोच कर

चुप हो जाती हूँ,


आज दिल पर बोझ ना रखूं,

यह सोच कर अकेले बड़बड़ा रही थी,

कोई सुन न ले यह सोच कर

खुद से ही कुछ कहे जा, रही थी,


दिल का बोझ अब कुछ

हल्का हल्का सा लग रहा था,

शायद मेरे मन की बात कोई सुन रहा था,

आस-पास देखा पर कोई नहीं दिखा, बाहर भी देखा पर

कोई न था छिपा,


मन ही मन सोच रही थी,

कोई था तो सही पर ना जाने

कौन शक्स था,

अचानक सामने नजर पड़ी,

और खुद पर हस पड़ी क्योंकि वो और कोई नहीं

मेरा ही अक्स था।


हम औरतों ‌की यह अदा बड़ी निराली होती है, जो बात,

किसी से न‌ कह पाएं,

वो बस खुद से कह कर खुश हो जाती हैं।


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