कुछ ख्वाब और (सकारात्मकता)
कुछ ख्वाब और (सकारात्मकता)
1 min
158
ख्वाब सजे इन आंखों में और नींद कहां से ले आऊं
उम्मीदों का हथियार लिए बस दौड़ पड़ू ना थम पाऊं
सपने अभी अधूरे हैं मैं चैन से कैसे सो जाऊं!
कभी गिर जाऊं कभी लड़ जाऊं
स्वाभिमान का साथ लिए बाधाओं से भी भिड़ जाऊं
संघर्षों की तपती भूमि पर आशा की बारिश बन जाऊं
सपने अभी अधूरे हैं मैं चैन से कैसे सो जाऊं!
नव भोर की मैं आस लिए हर रात ख्वाब सजाती हूं
नव ऊर्जा का संचार लिए खुद को खुद से मिलवाती हूं
अंतर्द्वंद्व से जीत का मैं साक्षात प्रमाण बन कर आऊं
सपने अभी अधूरे हैं मैं चैन से कैसे सो जाऊं!