थोड़ा और "सब्र"
थोड़ा और "सब्र"
इस विधि के बनाए विधान की, और कद्र कर लेते हैं
ए जिंदगी रुक जा थोड़ा चलते हैं, थोड़ा सब्र कर लेते हैं
हां, कुछ थकान सी लग तो रही है,
"बस और नहीं",कहने की इच्छा भी जग रही है,
कब तक चलना होगा? कहां तक जाना होगा ?
और भी कई प्रश्न अंतर्मन में सुलग रहे हैं,
ऐसी कई दुविधाओं में जाने कितने लोग झुलस रहे हैं,
हर रोज़ नयी चुनौती को स्वीकार करते हैं,
हर दिन एक नई दुविधा को पार करते हैं,
अगले मोड़ पर बस चैन और आराम पाएंगे,
बस यही आस लिए दूर तक चलते जाएंगे,
रूकते हैं कुछ देर कुछ नई,शर्तों का ज़िक्र कर लेते हैं
ए जिंदगी रुक जा थोड़ा चलते हैं, थोड़ा सब्र कर लेते हैं।