एक शाम उस दोस्त के नाम
एक शाम उस दोस्त के नाम
यार तू नहीं होता हो क्या होता
मेरे जिन बातों का कोई सर पैर नहीं
ना चाहते हुए सही पर कौन सुनता।
यार तू न होता
तो शायद आज भी अकेले ही होती
आंसू पोछने के लिए कोई साथ ना होता
रात भर किसी कोने में बैठके रोती
और किसी को कुछ पता भी ना होता
जो बात मैं किसी को बताती नहीं
वो तुझे पहले से ही पता होती है,
तुझसे बात करना जैसे खुद से बात करना हो
यार हमारी सोच भी कितनी मिलती जुलती है।
लोगों के भीड़ में अगर तू ना हो
तो खाली सा लगता है,
तेरे साथ ही बैठती है यारी अपनी
दूसरों के संग तो मामूली सा लगता है।
कभी हँसाती है
कभी रुलाती है
मगर हर मोड़ पे साथ निभाती है।
सुनती है सारा पागलपन मेरा
न जाने कैसे झेल पाती है।
पल में रूठ जाती है
पल में मान भी जाती है,
खुद करती है नादानियां
पर पागल मुझे ही बुलाती है।
अब आदत सी हो गई है मुझे उसकी
उसके बकवास भरी बातों की
उनके बिना कहां ज़िन्दगी चल पाती है।
बहुत ख़ास हो तुम
मैं एक दरिया में बहती कश्ती हूं
तो किनारा हो तुम,
मेरे सपनों की बारिश के बदल हो तुम,
सूखे रेगिस्तान में भरे तालाब हो तुम,
मेरे गितार में कसे हुए तार हो तुम,
मुझे मुफ्त में मिलने वाली दुआ हो तुम,
पागल हो तुम
मगर लाजवाब हो तुम,
और क्या कहूं की क्या हो तुम ?
एक अनोखा सा रिश्ता है ये हमारा
जिसका कोई नाम ही न हो
हैलो हैई तक सीमित रहे
जो रिश्ता इतना आम भी न हो
प्यार तो जहां बहुत होता हो
मगर जहां कहना मुश्किल होता हो
एक दिन भी बात न हो
जहां रहना मुश्किल होता है
दोस्ती से ज़्यादा
मगर प्यार से कम
अब जो भी है
जैसा भी है
मुझे यही अच्छा लगता है
सच झूठ से परे कई
मुझे यही सच्चा लगता है।
अब इस दोस्ती से बढ़कर कुछ नहीं
कुछ भी हो जाए मगर मेरे लिए सब कुछ है यही,
परेशानी में आज साथ निभाते हो
कभी मुझसे ही परेशान मत हो जाना,
पास तो हमेशा रहते हो
कभी दूर मत चले जाना,
देखकर ही चिल्लाते हुए गले लग जाते हो
कभी अजनबियों की तरह मुंह मत फेर लेना।
अब बस
जैसे हो वैसे ही रहना
बदलना नहीं
कितना भी कुछ हो जाए
भूल मत जाना कहीं।