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Ayushmati Sharma

Inspirational

4.7  

Ayushmati Sharma

Inspirational

शहीद-ए-भगत

शहीद-ए-भगत

2 mins
301



सरफरोशी की तमन्ना तब

हमारे दिल में आया था,

लहू का प्रत्येक कतरा

इंकलाब लाया था,

क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम,

पूरा हिंदुस्तान उस दिन रोया था,

23 मार्च 1931 का दिन काल बनके आया था,

जब फांसी के फंदे पर

तीन वीरों को झुलाया था,

सुखदेव, भगत, राजगुरु के

मन को कोई दूजा न भाया था,

खुशी-खुशी वतन के वास्ते

मौत को गले लगाया था।


इंकलाब का नारा लिए

हमसे विदा लेने की ठानी थी,

लटक गए तुम फांसी पर परन्तु मुंह

से एक शब्द तक नहीं निकली थी,

देख ऐसी वीरता तुम्हारी

पूरा जग है रोया था,

खुशी-खुशी वतन के वास्ते

मौत को गले लगाया था।


सीने में जुनून का राग था,

न मौत का कोई डर था,

न परवाह थी अपने प्राण की,

छोड़ मोह माया इस जग का

अपनों को छोड़ के आया था,

भारत माता को गोद लिया था,

इस वतन को है अपनाया था,

लेके जन्म इस पुनीत भूमि पर,

अपना फर्ज निभाया था,

खुशी-खुशी वतन के वास्ते

मौत को गले लगाया था।


अलविदा कहकर चल दिए,

दिखाकर सपना आज़ादी का,

सपना हुआ आपका सच

पर रोज़ दिखता है दृश्य बर्बादी का,

कहीं गरीब भूखा मारता है,

तो कहीं अमीरों का घर भरता है,

कहीं जात-पात की शोर होती है,

तो कहीं नारी पर भर-भरता बरस आती है,

यही अफसाना है आज़ाद भारत का,

जब जब याद आया आपका

इन आंखों ने अश्रुधारा बहाया था,

खुशी-खुशी वतन के वास्ते 

मौत को गले लगाया था।


टुकड़े टुकड़े कर गोरों ने

भारत मां का सीना चीरा था,

हिन्दू मुस्लिम के पंगो ने

भाईचारा को बहकाया था,

जातिवाद के इस खेल में

लड़ाई सबकी मजबूरी थी,

कुछ को हिंदुस्तान मिला तो

कुछ ने पाया पाकिस्तान था,

देखते ही देखते बंट गया ये समाज अपना

ऐसा तो नहीं देखा था आपने सपना,

सरहद के उस विभाजन का

आज असर कुछ गहरा दिखता है,

भारत-पाक् के उन सीमाओं पर

हर रोज़ जवान मौत की मार मरता है,

आपके सपनों पर ये भारत 

खरा न उतार पाया था,

सलाम उन वीरों को जिन्होंने

खुशी-खुशी वतन के वास्ते

मौत को गले लगाया था।


जय भगत !

जय भारत !

इंकलाब ज़िंदाबाद !


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